IPC Section 65 in Hindi: नमस्कार दोस्तों आप सभी का स्वागत है ipc-section.com के इस नए पोस्ट में आज के इस पोस्ट में हम बात करने वाले हैं भारतीय दण्ड संहिता के धारा 65 के बारे में, पिछले पोस्ट में हमने आईपीसी के सेक्शन 63 और 64 के बारे में बात किया था धारा 64 यह बात करती है कि जहां पर कोर्ट को यह नहीं पता होता किसी अपराध में कितने अमाउंट का फाइन लगाया जाए वहां पर कोर्ट अपने विवेक को इस्तेमाल करते हुए फाइन के अमाउंट को डिसाइड कर सकती है
तो वहीं आईपीसी का सेक्शन 64 यह कहता है कि ऐसे मामले जहां पर सजा और जुर्माना दोनों लगाए जाते हैं और जब अपराधी जुर्माने की रकम को कोर्ट में जमा नहीं करता है तो वहां पर कोर्ट को यह पावर दी जाती है आईपीसी के सेक्शन 64 के तहत कि वह उस जुर्माने की रकम को सजा में चेंज कर सके यानी कि जो पहले सजा दी गई थी उसी सजा में जुर्माने की सजा भी ऐड कर दी जाती है
तो आज इस लेख में हम जानेंगे कि आईपीसी धारा 65 क्या है? Section 65 of IPC in Hindi, धारा 65 भारतीय दण्ड संहिता, What is IPC Section 65, IPC Section 65 Explained in Hindi, धारा 65 का विवरण आदि के बारे में तो आइये आज के इस पोस्ट कि शुरुवात करते हैं…
IPC Section 65 in Hindi | आईपीसी धारा 65 क्या है
IPC Section 65 Explained in Hindi: आईपीसी का सेक्शन 65 यह कहता है कि ऐसे मामले जहां पर कोर्ट किसी अपराधी को या तो सजा दे सकती है या फिर उस पर जुर्माना लगा सकती है यानी कि दोनों तरह के ऑप्शन उनके पास मौजूद होते हैं तो वहां पर कोर्ट अपराधी पर जुर्माना लगाती है और जुर्माना लगाने के बाद भी अगर अपराधी उस अमाउंट को पे नहीं करता है तो ऐसी परिस्थिति में कोर्ट को क्या करना चाहिए तो आईपीसी का सेक्शन 65 ये कहता है कि कोर्ट ऐसी कंडीशन में उस अमाउंट के लिए सजा को निर्धारित कर सकती है
लेकिन वो सजा उस केस में लगाई गई एक चौथाई से ज्यादा नहीं होनी चाहिए इस एक उदाहरण की मदद से समझते हैं, मान लीजिए किसी केस में 2 साल की सजा का प्रावधान किया गया है या फिर उसमें 2000 का जुर्माना भी लगाया जा सकता है, दोनों में से एक ऑप्शन चूज की जा सकती है तो कोर्ट क्या करती है कि उस अपराधी को सजा के तौर पर सिर्फ उस पर ₹2000 का जुर्माना लगाती है.
लेकिन बाद में आरोपी उस जुर्माने को जमा नहीं करता है तो उस कंडीशन में कोर्ट क्या करती है कि 2 साल की उस जुर्माने के राशि को सजा में तब्दील कर सकती है, लेकिन यह सजा जो होगी वो उस केस में जो निर्धारित सजा है यानी कि जो 2 साल की सजा है, उसकी एक चौथाई ही दे सकती है, यानी कि उसे 6 महीने की सजा ही दी जा सकती है.
यह धारा उन सभी मामलों में लागू होती है, जहां पर अपराध या तो सजा या फिर जुर्माने के लिए बताए गए हैं, यह धारा उन मामलों में लागू नहीं होगी जहां पर सजा और जुर्माना दोनों साथ-साथ लगाए जाते हैं, एसोसिएशन ऑफ विक्टिम ऑफ उपहार ट्रेजटी वर्सेस सुशील अंसल के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह निर्धारित किया गया था कि धारा 65 में जो सजा बताई गई है.
अगर उससे ज्यादा सजा दे दी जाती है, उसके लिए अगर कोई आपत्ति होती है तो वह आरोपी ही कर सकता है, जिसको वो सजा सुनाई गई है, राज्य के द्वारा इसमें किसी भी तरह की आपत्ति नहीं की जा सकती.
धारा 65 का विवरण – What is IPC Section 65
धारा 65 का विवरण
जब कि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किए जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास की अवधि
भारतीय दंड संहिता की धारा 65 के अनुसार, यदि अपराध कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय हो, तो वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निदेश दे, कारावास की उस अवधि की एक चौथाई से अधिक न होगी, जो अपराध के लिए अधिकतम नियत है
IPC Section 65 Definition
According to Section 65 – “Limit to imprisonment for non-payment of fine, when imprisonment and fine awardable”–
“The term for which the Court directs the offender to be imprisoned in default of payment of a fine shall not exceed one-fourth of the term of imprisonment which is the maximum fixed for the offence, if the offence be punishable with imprisonment as well as fine.”
Conclusion
तो दोस्तों यह था आईपीसी का सेक्शन 65, Section 65 IPC in Hindi आशा करता हूँ कि आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा, यदि लेख का इंफॉर्मेशन अच्छा लगा है तो आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना बिल्कुल मत भूलिएगा. अगले पोस्ट में हम बात करेंगे IPC Section 66 के बारे में
Also Read👇